Saturday, May 18, 2024
Home Editorial/सम्पादकीय पूर्वाग्रह ग्रसित कुछ लोगों द्वारा इतिहास को विकृत करने की साजिश

पूर्वाग्रह ग्रसित कुछ लोगों द्वारा इतिहास को विकृत करने की साजिश

इतिहास समाज का वह दर्पण होता है जो अतीत का तथ्यात्मक या सत्याभासित विवरण प्रस्तुत करता है ताकि वर्तमान को अतीत की सही सूचना प्राप्त हो सके। इतिहास लेखन के लिये पुरातात्विक, पुरालेख, सिक्के, डायरियां, सरकारी दस्तावेज, लोकवार्ताएं व लोकगीत एवम् लोकगाथाएं इतिहास को पूर्णता प्रदान करते हैं। परन्तु आज के सोशल मीडिया के युग में कुछ ऐसे लोग इतिहास से छेड़छाड़ कर रहे हैं मानों वह जो सोचते हैं वही प्रमाणिक है। ऐसा बेहुदा इतिहास लेखन इतिहास की हत्या करने से कम घातक नहीं है। कुछ तथाकथित स्थानीय इतिहास लेखक जो इतिहास के मूलभूत सिद्धान्तों का ककहरा नही जानते वे समाज के समक्ष एक ऐसा भ्रामक इतिहास परोस रहे हैं जो समाज के भविष्य के साथ खिलवाड़ है।

हाल ही में 20-21 जून को कुमारसैन तहसील के पाटीजुब्बल में पाटीजुब्बल जातर मेले का आयोजन हुआ। इस मेले में कुमारसैन के देव अधिष्ठाता महादेव कोटेश्वर अपने चिन्ह के साथ पाटीजुब्बल पधारकर लोगों को आशीष प्रदान करते हैं। इसी मेले के सन्दर्भ में प्रमाणिक वीडियो व प्रिंट रिपोर्ट बनाकर समाचार पत्रों में प्रकाशित किया गया। इस तथ्यपरक जानकारी को प्रमाणित दस्तावेजों एवम् लोक में व्याप्त मान्यताओं के आधार पर प्रमाणित रूप में लिखा गया था। एक इतिहासकार का उद्देश्य व धर्म है कि वह समाज को प्रमाणिक ऐतिहासिक जानकारी प्रदान करे ताकि इतिहास व संस्कृति जो हिमाचल की विशिष्टता है उससे यथार्थ रूप से लोग अवगत हों।

पाटीजुब्बल मेले के विषय में यह सर्वमान्य धारणा है कि यह उत्सव कुमारसैन की पड़ोसी रियासत शांगरी पर जीत का उत्सव है। चूंकि कुमारसैन व शांगरी की सीमायें जुड़ी होने के कारण प्राय:आपसी सम्बन्धों में कटुता रही है। वास्तव में उपलब्ध इतिहास के स्रोतों के अनुसार शांगरी रियासत का उल्लेख 18वीं शताब्दी के पहले चरण में हमें मिलता है जब कुल्लू के तत्कालीन राजा मान सिंह (1689-1719) ने लाहौल से लेकर केपु तक का क्षेत्र जीत लिया। तदोपरान्त उसने आगे बढ़ते हुए सतलुज पार कर कुमारसैन व शांगरी के शासक ठाकुर पर आक्रमण कर अपने क्षेत्र का विस्तार का अभियान आरम्भ किया।

इतिहास के स्रोतों के अनुसार मानसिंह ने शांगरी की ठकुराई को अपने अधीन कर पश्चिम में कन्द्रु क्षेत्र को भी अपने अधीन किया, कन्द्रू उस समय तक कुमारसैन का भाग था। इस बात का प्रमाण यह है कि धार कन्द्रू में कलवा नाग को धार में स्थान कुमारसैन के राणा ने दिया था। मानसिंह द्वारा कन्द्रु पर विजय का लिखित प्रमाण पहली जनगणना 1881 के दस्तावेज में है। जिसके अनुसार आज भी धार कन्द्रू के कालू नाग मंदिर में मानसिंह देव रूप में पूजित है (जनगणना 1881)। अत: मानसिंह के आक्रमण के समय से ही शांगरी के इतिहास को राज्य के इतिहास में परिचय मिला। इससे पूर्व यहां पंद्रहवीं शताब्दी तक ठाकुर का राज्य था जैसा हिमाचल की अन्य रियासतों में था। अत: लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व ही सिरमौर से आए ठाकुर ने रिक्त पड़ी गद्दी पर बैठकर शासन चलाया।

इतिहास में तो बस इतना लिखा है कि शांगरी मानसिंह के आक्रमण से पहले अधिकत्तर बुशहर के अधीन एक ठकुराई थी। जबकि कुमारसैन का इतिहास 1000 ई. से आरम्भ होता है। बहुधा कुमारसैन ने भी इसे करद रखा। मानसिंह की हत्या कुमारसैन व बुशहर की सेनाओं ने उर्शु में की।, यह घटना जहां लोगगीतों में अंतरभुक्त है वही स्रोत पुस्तकों में है। राजा की मृत्यु का लाभ उठाकर कुमारसैन ने शांगरी विजय दर्ज कर शांगरी का छबीशी परगना लेकर पाटीजुब्बल में अपनी सीमा निश्चित की, इसी उपलक्ष पर पाटीजुब्बल की जातर का आरम्भ कुमारसैन के राणा ने किया. यही परम्परा आजतक चली आ रही है।

उपरोक्त सारी घटनाएं इतिहास की पुस्तकों में अंकित है, यही कुछ लिखा गया। इस आलेख की प्रतिक्रिया में कुछ पूर्वाग्रह से ग्रसित तथाकथित विद्वान कहते हैं कि पाटीजुब्बल की जातर देवताओं की विजय नहीं थी, बल्कि यह राजनीतिक विजय थी पर आलेख में भी राजनीतिक विजय ही तो लिखा गया है फिर आपत्ति कैसी? साथ ही ऐसे मानसिक रूप से बीमार लोग ऐसी अशिष्ट भाषा का प्रयोग करते हैं जो उन विद्वानों को कतई शोभा नही पाता। चूंकि इतिहास लेखन में त्रुटियां स्वभाविक है और इतिहास लेखन नरन्तर विकास की प्रक्रिया में रहता है। वास्तव में उपलब्ध जानकारियां ही तो साधन होती है इतिहास की यदि आपत्ति करनी ही है तो अपने पक्ष को प्रमाण सहित रखकर करना चाहिए ताकि सूचना दुरूस्त हो। आगे यही तथाकथित इतिहासकार कहते हैं कि जब कुमारसैन ने शांगरी किले पर आक्रमण किया तो वे किले को बारह वर्षों तक भेद न सके। कुमारसैन वालों ने शांगरी के किले को जीतने के लिये गाय, बिल्ली व सांप का खून किले की मुख्य प्रौड़ पर लगाकर शांगरी को समर्पण के लिये बाध्य किया

वाह! क्या इतिहास है! क्या कभी भारत के इतिहास में ऐसा सन्दर्भ मिलता है कि किसी हिन्दू राजा ने गाय को मार कर अपने राजनीतिक हित को साधा हो। शायद कोई हिन्दू ऐसा निकृष्ट कार्य नहीं करेगा। ऐसी झूठी जानकारी यदि सत्य है तो प्रमाण सहित स्रोत का संदर्भ दे। एक अन्य अवास्तविक व हास्यास्पद सूचना इस इतिहासकार ने यह दी कि बारह वर्ष तक शांगरी के शासक ने किले का घेरा डाले कुमारसैन की सैना का सामना किया। किले में पानी,रसद व मवेशी सभी कुछ थे। तभी बारह वर्षों तक डटे रहे! इन्हे स्मरण दिला दें कि हिमाचल में 1806 से 1809 तक गोरखों ने संसारचंद को किले में घेरे रखा। एक इतिहासकार ने लिखा है कि कांगड़ा के राजा के किले में घिर जाने से मार्ग पर झाड़-झंकार उभर आये और बाघिनें मार्गमें प्रसव करन लगी। मतलब सारा कांगड़ा उजड़ गया पर ये महाशय इतिहासकार तो शांगरी के शासक व सेना को किले में बारह वर्ष तक कैद कर गये

कल्पना करें बारह वर्ष तक एक छोेटे से किले में पूरी रियासत समा सकती है। यदि शासक व सैनिक व प्रजा का कुछ हिस्सा किले में दैवीय शक्ति से बारह वर्ष तक अंदर रहा तो क्या कुमारसैन ने बाहर रियासत को जीतने से बख्शा होगा? जबकि वास्तविकता यह है कि कुमारसैन व शांगरी का संघर्ष बारह वर्षों तक चला और जीत तब हासिल हुई जब राजा मानसिंह मारा गया और अवसर पाकर कुमारसैन ने शांगरी पर विजय पायी, इस पूरे प्रकरण से यह सिद्ध होता है कि कुछ पूर्वाग्रह से ग्रसित लोग अपनी क्षेत्रीय संकीर्णता व रियासती काल की घटनाओं से जन्मी हीन भावना से बाहर नहीं आये हैं।

आज हम हिमाचल के गर्व से ऊंचा सिर किये लोग हैं। देव परम्परा हमारे जीवन से अविच्छिन रूप से जुडी है। सभी देव परमब्रह्म का स्वरूप है। ये जो खड्डो, घाटियों, नदी-नालों व रियसतों-परगनों की वजह से जो हम पूर्व में बंटे थे कृपया अब न बंटे, वैश्विक दृष्टि रखें. इतिहास लिखने से पहले यह संकल्प लें कि हम उज्जवल वर्तमान व भविष्य को ध्यान में रखकर वही लिखें जो सत्य हो। महादेव, देव, मरेच्छ, नाग, जड़ व देवी-यक्षिणी सभी परम तत्व की ऊर्जा ही है। हमें तो यहां के स्वच्छ इतिहास व परम्पराओं को सामने लाना है। मंदिरों में जो जड रूढ़ियां व लौकिक कष्ट के निवारण के लिये तंत्रपूजा, बलि व अन्यान्य भ्रामक आडम्बर जुडे हैं उनका पर्दाफाश करना है। मंदिर हमारी संस्कृति के पैरोकार हैं आमजन को मामसिक रोगी बनाने या भयभीत करने के स्थान नहीं।

प्रत्युत यहां कि देव परम्पराओं को ईश्वर प्राप्ति का हमें साधन बनाना है ताकि हमारी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो, यही तो जीवन का परम उद्देश्य है। आवश्यकता है कि इतिहास को एक पक्षीय, काल्पनिक, हास्यास्पद व खेल की वस्तु न बनाये। आखिर आज जो हम इतिहास से खिलवाड़ करेंगे वही विकृत इतिहास आने वाली पीढ़ियों को भी संकीर्णता व हीन भावना से भर देगा। आओ सबक लें कैसे पाश्चात्य विद्वानों ने हमारे इतिहास व संस्कृति का चीरहरण कर हमें संस्कारविहीन बना दिया। उसका दंश आज हम भुगत रहे हैं, आईए सार्वभौमिक सोच रखें। शिष्ट भाषा व मर्यादा में रहकर चिंतन करें, मन को स्वच्छ व निश्च्छल रखें, सामने तभी विकृति उगलोगे यदि मन में विकार होगा

✍️ डॉ. हिमेन्द्र बाली, इतिहासकार एवं साहित्यकार

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