Saturday, May 18, 2024
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हिमाचल में लोकसभा और विधानसभा उपचुनाव का दिलचस्प मुकाबला

✍️ हितेन्द्र शर्मा

हिमाचल प्रदेश में लोकसभा की चार और विधानसभा की छ: सीटों के लिए अंतिम चरण में चार जून को चुनाव हो रहे हैं। अब की बार लोकसभा में चार की चार और विधानसभा में भी छः सीटें जीतने का दावा दोनों प्रमुख दलों द्वारा किया जा रहा है। वास्तव में लोकसभा की चार और विधानसभा की छ: सीटें किसे मिलती हैं या किसको कितनी-कितनी मिलती हैं, यह निर्णय तो मतदाताओं को ही करना है। लोकसभा के चुनाव के लिए भाजपा ने मंडी से कंगना रणौत, कांगड़ा से डॉ राजीव भारद्वाज, हमीरपुर से केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और शिमला से पूर्व सांसद सुरेश कश्यप को मैदान में उतारा है जबकि कांग्रेस की ओर से मंडी में लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह और शिमला में विधायक विनोद सुल्तानपुरी मैदान में है। कांग्रेस की वर्तमान अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह ने स्थितियां अनुकूल न होने तथा कार्यकर्ताओं में निराशा होने के कारण चुनाव लड़ने से मना कर दिया और पार्टी को उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह को चुनाव में उतारना पड़ा।

हालांकि मंडी लोकसभा क्षेत्र की प्रत्याशी कंगना रणौत राजनीति में नई है परंतु राष्ट्रवाद के लिए उनका समर्पण, स्पष्टवादिता तथा संघर्षशील व्यक्तित्व उन्हें राजनीति में स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव हो सकता है। कंगना रणौत ‘अबकी बार चार की चार’ का नारा बुलंद करके नरेंद्र मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने के लिए केंद्र सरकार की उपलब्धियों, सनातन एवं भारत माता तथा विकसित भारत के लिए वोट मांग रही है जबकि विक्रमादित्य सिंह एक दमदार युवा प्रत्याशी के रूप में हिंदुत्व की दुहाई देते हुए पूर्व सांसद के कार्यक्रमो तथा वर्तमान सरकार की योजनाओं के आधार पर मतदाताओं को आकर्षित करने में लगे हैं। 

यद्यपि कुछ भारत विरोधी अंतर्राष्ट्रीय ताकतें प्रधानमंत्री का पुरजोर विरोध करने की कोशिश कर रहे हैं। विश्व समुदाय की भी इस चुनाव पर पैनी नजर बनी हुई है। परंतु नरेंद्र मोदी इन चुनौतियों का सामना करने के लिए पूरी तरह से सजग और तैयार दिखते हैं तथा पूरे देश में धुआंधार चुनावी जनसभाओं को संबोधित करने में कड़ी मेहनत भी कर रहे हैं जबकि विपक्ष राष्ट्रीय स्तर पर बिखरा हुआ नजर आता है और क्षेत्रीय दलों के प्रदर्शन पर ही केंद्र के राजनीति निर्भर करेगी। हिमाचल में लोकसभा चुनाव प्रधानमंत्री के नाम पर लड़ा जा रहा है जबकि कांग्रेस भी चुनाव में बराबर की टक्कर देने के लिए तैयार है।

अभी तक सभी चुनाव पूर्व सर्वेक्षण यही बता रहे हैं कि नरेंद्र मोदी तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं और बिखरा हुआ विपक्ष उनके मुकाबले में काफी पिछड़ता रहा है। इस दृष्टि से यह चुनाव सीधा प्रधानमंत्री के नाम पर केंद्रित हो गया है जबकि विपक्ष के पास कोई एक सर्वमान्य चेहरा अभी तक सामने नहीं आया है। इंडी गठबंधन के दल एक दूसरे का विरोध करते हुए नजर आ रहे हैं। ऐसे में अगर हिमाचल में बीजेपी चारों सीट जीत जाती है तो केन्द्र की सरकार में हिमाचल का भी प्रतिनिधित्व निश्चित हो सकेगा। केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनने पर हिमाचल को कोई खास प्रतिनिधित्व मिलने की उम्मीद फिलहाल तो नहीं लगती। हिमाचल में मतदाता के पास एक विकल्प भाजपा के पिछले 10 वर्षों की मोदी सरकार की उपलब्धियां का मूल्यांकन करते हुए राष्ट्र के चहुंमुखी तीव्र विकास एवं विकसित भारत के लिए वोट करने का है तथा दूसरा विकल्प कांग्रेस सरकार की केन्द्र मे पहले की कारगुजारियों तथा अपने समय के शासन तथा उपलब्धियां के पक्ष में अपना मतदान का है। अब यह तो मतदान के नतीजे ही तय करेंगे की हिमाचल का जागरूक मतदाता किसे चुनता है। मतदाताओं को केंद्र के साथ-साथ प्रदेश की उपचुनावों पर भी मतदान करना है जिसमें केंद्र और प्रांतीय सरकार की कारगुजारी भी मुख्य मुद्दा हो सकता है। 

कांग्रेस को हमीरपुर और कांगड़ा में लोकसभा तथा विधानसभा के लिए प्रत्याशी ढूंढने में भारी मशक्कत करनी पडी और चुनाव प्रचार के लिए कम समय मिल पाया। उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री की पुत्री आस्था अग्निहोत्री ने भी हमीरपुर संसदीय क्षेत्र और गगरेट विधानसभा से चुनाव लड़ने से मना कर दिया है जो कि संगठन और चुनाव की दृष्टि से एक अच्छा संकेत नहीं कहा जा सकता है। 

इन परिस्थितियों में निर्णय जागरूक मतदाताओं को लेना है कि वह केंद्र में किसे प्रधानमंत्री चुनना चाहते हैं तथा विधानसभा के चुनाव में किसको अपना समर्थन देते हैं। केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्वच्छ छवि, कर्मठता और विकसित भारत का सपना है तो विपक्ष में इंडी गठबंधन के नेतृत्व का चयन चुनाव में होने वाली सफलता पर निर्भर करता है। फिलहाल फैसला जनता के हाथ में है जो चुनाव के नतीजों के बाद ही सामने आ सकेगा।

इधर कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए छः विधायक भाजपा की टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। इन विधायकों द्वारा कांग्रेस में रहते हुए राज्यसभा के लिए भाजपा के प्रत्याशी हर्ष महाजन के पक्ष में मतदान करने पर अयोग्य करार दिया गया था। सरकार बचाने तथा बजट पारित करवाने के लिए भाजपा के पंद्रह विधायकों को निलंबित करना पड़ा था। यद्यपि एक मंत्री और एक विधायक को संसद का चुनाव लड़ाया जाना जोखिम भरा हो सकता है। इनकी जीत होने पर वर्तमान सरकार में दो विधायक कम हो जाएंगे और अगर भाजपा के छह विधायक जीत जाते हैं तो सरकार को बचाना कठिन हो जाएगा। यदि मंत्री और विधायक चुनाव हार जाते हैं तो उनकी साख जरूर गिरेगी और उन्हें अपनी पार्टी के भीतर ही फिर से संघर्ष करना पड़ सकता है। क्योंकि वर्तमान नेतृत्व की नीति और नीयत अब स्पष्ट होने लगी हैं कि वे संभवतः पूर्व मुख्यमंत्री के हिमायतियों को किनारे करने में लगे हैं। सरकार को बनाए रखने के लिए खुद को स्थापित करना अधिक जरूरी लगता है। 

इधर यदि मंत्री विक्रमादित्य सिंह और विधायक विनोद सुल्तानपुरी जीत जाते हैं तो उन्हें विधायक पद से इस्तीफा देना पड़ेगा। ऐसे में कांग्रेस सरकार अल्पमत में आ जाएगी। उस स्थिति में तीन निर्दलीय विधायकों के त्यागपत्र स्वीकार करके सरकार बचाने के अलावा कांग्रेस के पास कोई और विकल्प नजर नहीं आता । विक्रमादित्य के स्थान पर उनकी माता प्रतिभा सिंह को शिमला ग्रामीण से तथा विनोद सुल्तानपुरी के स्थान पर उनके किसी परिवारजन को चुनाव लड़ा कर जीतकर आना और तीन निर्दलीय विधायकों का आगामी छह महीने के अंदर उपचुनाव करवाना और तीनों सीट जीत पाना, यदि संभव होता है तभी सरकार सुख चैन की सांस ले सकेगी अन्यथा राजनीतिक उठा पटक की इन विपरीत परिस्थितियों में ठाकुर जय राम फिर से मुख्यमंत्री के पद के लिए संभावित दावेदारी जीतने के लिए प्रयत्नशील हो सकते हैं।

नतीजा कुछ भी हो हिमाचल में यह वर्ष चुनाव के लिए जाना जाएगा, पहले लोकसभा और विधानसभा का पहला उपचुनाव और फिर उसके बाद विधानसभा के दूसरे उपचुनाव में पूरा साल बीत जाने का अंदेशा है जिससे सरकारी कामकाज तो ठप रहेगा ही, राजनीति में उठा पटक का दौर भी बखूबी चलता रहेगा। हिमाचल में भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए आगामी छह सात महीनों तक खींचतान का माहौल बना रहेगा। ऐसे में कटेगा तो खरबूजा ही, नुकसान जनता का ही होगा, यह निश्चित है। जो भी सरकार बने, वह अपना कार्यकाल पूरा करें, जनता के कल्याण के लिए काम करें और राष्ट्रवाद तथा आत्मनिर्भर प्रदेश और भारत के लिए समर्पित हो।

हितेन्द्र शर्मा
(पत्रकार एवं साहित्यकार)
शिमला, हिमाचल प्रदेश

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